वर्तमान युग
पर्यावरणीय
चेतना
का
युग
हैं।
आज
मानव
उन्नति
की
तरफ
तेजी
से
दौड़ता
जा
रहा
हैं।इस
उन्नति
की
भूख
में
मानव
ने
प्राकृतिक
स्त्रोतों
का
अंधाधुंध
दोहन
प्रारम्भ
कर
दिया
हैं।इससे
वर्तमान
में
पर्यावरणीय
संतुलन
बिगड़ने
लगा
हैं,
जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण प्राकृतिक आपदाओं
के रूप
में गोचर
हैं।पर्यावरण का
अर्थ मानव
के इर्द
गिर्द प्रत्येक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष चीजों से हैं
जैसे वायु, जल,
सूर्य की
ऊष्मा,
जीव-जंतु इत्यादि।पेड़ पौधे भी पर्यावरण का एक अभिन्न
अंग हैं
व पर्यावरण संतुलन की सबसे
महत्वपूर्ण कड़ी
हैं।
वैश्विक तापन (ग्लोबल वार्मिंग):
वैश्विक तापन का सामान्य अर्थ पृथ्वी के औसत ताप में वृद्धि से लिया जा सकता हैं। पिछले २००वर्षों में पृथ्वी का औसत तापमान ०.७४ डिग्री सेंटीग्रेड की दर से बढ़ा हैं। पृथ्वी के तापमान का बढ़ना वैश्विक तापन का मुख्य मापक हैं।वैश्विक तापन को विश्व भर में सबसे बड़े खतरे के रूप में देखा जा रहा हैं।
वैश्विक तापन होने का प्रमुख कारण सूर्य से प्राप्त ऊष्मा का पृथ्वी पर अधिकतम संग्रहण हैं। सूर्य से प्राप्त ऊष्मा का अधिकांश हिस्सा पृथ्वी पर पड़ने के बाद परावर्तित होकर वापिस वायुमण्डल के बाहर चला जाता हैं व पृथ्वी का एक नियत ताप (लगभग१६डिग्री सेंटीग्रेड) बना रहता हैं। पृथ्वी का सामान्य ताप (१६ डिग्री सेंटीग्रेड),पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीव-जन्तुओ के लिए आवश्यक तापक्रम हैं। वर्तमान में हरित गृह (ग्रीन हाउस) गैसों की मात्रा बढ़ते रहने के कारण ये परावर्तित सूर्य की ऊष्मा को रोकने का काम करने लगी हैं। ये हरित गृह गैस पृथ्वी के चारों तरफ एक आवरण बना लेती हैं जो पृथ्वी से परावर्तित सूर्य की ऊष्मा को पृथ्वी के परिमंडल से बाहर नहीं निकलने देती हैं, जो पृथ्वी के औसत तापक्रम को बढ़ाने में उत्तरदायी होता हैं।
वैश्विक तापन के मुख्य कारण:
वैश्विक तापन का शाब्दिक अर्थ पृथ्वी के औसत तापमान का बढ़ना हैं।यह मुख्यतः जलवायु को परिवर्तित करने वाले आंतरिक एवं बाह्य दोनों तरह के कारकों से प्रभावित होती हैं।वैश्विक तापन के मुख्य कारणों का विवरण निम्न प्रकार हैं:
(अ) आंतरिक कारण: जलवायु परिवर्तन को एक आंतरिक वजह अल-नीनो प्रभाव हैं। जिसके कारण वैश्विक तापन में जलवायु परिवर्तन की वजह से मदद मिलती हैं।
(आ) बाह्य कारण: वैश्विक तापन के जिम्मेदार बाह्य कारणों में मुख्यतः वो कारण है, जो किसी न किसी रूप में हरित गृह गैसों का सांद्रण बढाकर पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि का कारण बनते हैं।ये मुख्यतः निम्न प्रकार हैं:
(i) मानव जनित हरित गृह गैसों का उत्सर्जन:
हरित गृह गैसों में मुख्यतः कार्बन-डाई-ऑक्साइड,मीथेन, ओजोन, क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन व पर फ्लुओरो कार्बन इत्यादि आते हैं। मानव के द्वारा नित निरंतर बढ़ती उन्नति की भूख ने हरित गृह गैसों के सांद्रण में यकायक तेजी ला दी हैं।कार्बन-डाई-ऑक्साइड का सर्वाधिक उत्सर्जन जीवाश्मीय ईंधनों पर आधारित ऊर्जा संयंत्र करते हैं।इसका दूसरा सबसे बड़ा सृजक कल-कारखाने एवं वाहन हैं।
वही दूसरी और वातानुकूलित संयंत्रों एवं शीतलन संयंत्रों में उपयोगित क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन व पर-फ्लुओरो कार्बन गैसों ने भी हरित गृह गैसों का सांद्रण बढ़ाया हैं।
(ii) वृक्षों की कटाई:
उन्नति की चाह में निरंतर परिवर्तित भूमि उपयोग ने वृक्षों पर निर्मम प्रहार किया हैं, जो वृक्ष पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने का प्रमुख हैं। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ने भी कार्बन डाई ऑक्साइड सांद्रण पर्यावरण में बढ़ दिया हैं, जो वैश्विक तापन के लिए प्रमुख जिम्मेदार हैं।
वैश्विक तापन के प्रमुख प्रभाव:
वैश्विक तापन में जिस तरह पृथ्वी का औसत तापमान निरंतर बढ़ता जा रहा हैं, उसके प्रत्यक्ष प्रभाव निम्न प्रकार समझे जा सकते हैं।
(अ) ध्रुवीय बर्फ का पिघलना- जिस गति से वैश्विक तापन हो रहा हैं, उससे यह अनुमान हैं की सन २०३० तक ध्रुवीय बर्फ़ों के पिघलने के कारण ही विश्व में समुद्र स्तर औसतन २५ सेमी तक बढ़ जायेगा। इसका अर्थ इस प्रकार समझा जा सकता हैं की तटीय देशों का अस्तित्व ख़त्म होने के कगार पर हैं।
(आ) विशिष्ट जैविक प्रजातियों का विलोपन- वैश्विक तापन की वजह से भविष्य में ध्रुवीय भालू, बाल्टीय ओरियो (एक पक्षी) व अनेकानेक प्रकार की मछलियों की कई विशिष्ट प्रजातियां विलुप्त हो जाएगी।
(इ) कृषि पर प्रभाव- वैश्विक तापन की वजह से ऋतु चक्र में परिवर्तन परिलक्षित होने लगा हैं। शीतकाल में गर्मी का अनुभव होना इसका प्रत्यक्ष लक्षण हैं। ऋतु चक्र में परिवर्तन का कृषि पर सीधा असर पड़ता हैं। अतः वैश्विक तापन से ऋतु चक्र में परिवर्तन पर बुरा असर डालना प्रारम्भ कर चुका हैं, जो भविष्य में एक विकराल समस्या के रूप में खड़ा हो सकता हैं।
कृषि पर वैश्विक तापन के असर का प्रत्यक्ष उदाहरण हिमाचल की घाटियों में घटती हुयी सेव की फसल से लिया जा सकता हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय कृषि संस्थान केद्वारा प्रस्तुत एक प्रतिवेदन के अनुसार सेवों के उत्पादन का क्षेत्र ३० किमी उत्तर की ओर खिसकचुका हैं।
(ई) समुद्र तटीय क्षेत्रों की समाप्ति- वैश्विक तापन की वर्तमान दर को देखते हुए ऐसा अनुमान लगाया जा रहा हैं कि सन २०३५ तक भारत का प्रवेशद्वार मुंबई भी जल में विलीन हो जायेगा। विगत वर्षों में आये समुद्री चक्रवातों को इसी श्रृंखला की शुरुआत की तरह देखा जा रहा हैं।
(उ)बढ़ते रेगिस्तान-वैश्विक तापन की वजह से ऋतु चक्र के परिवर्तन के प्रमुख प्रभाव के रूप में थार के रेगिस्तान के लगातार बढ़ते रहने को उदाहरण की तरह लिया जा सकता हैं।
वैश्विक तापन से बचाव के उपाय:
वैश्विक तापन के पप्राकृतिक कारणों (जैसे अल-नीनो प्रभाव) पर तो मानव का वश नहीं है, किन्तु वैश्विक तापन के मानव जनित कारणों के लिए “बचाव ही उपाय” का सिद्धांत कारगर हो सकता हैं। वैश्विक तापन से बचाव के लिए प्रमुख उपाय निम्न प्रकार हो सकते हैं।
(अ) वृक्षारोपण-प्रत्येक मानव वृक्षारोपण करके वैश्विक तापन के ख़िलाफ़ जंग का आगाज़ कर सकता हैं।एक वृक्ष कार्बन-डाई-ऑक्साइड के एक प्रमुख भाग को अवशोषित कर हरित गैसों का सांद्रण कम करने में मदद कर सकता हैं।
(आ) अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि का पालन- प्रत्येक देश को इस विचार को छोड़ते हुए अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि का पालन करना चाहिए की वो वैश्विक तापन के लिए कितना जिम्मेदार हैं। वैश्विक तापन एक क्षेत्र विशेष की समस्या न होकर सम्पूर्ण पृथ्वीवासियों की समस्या हैं, जिसका समाधान क्षेत्रीय भावना से प्रेरित होकर नहीं किया जा सकता हैं।
अतः अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि के अनुसार प्रत्येक राष्ट्र को हरितगृह गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लगातार प्रयत्न करने चाहिए एवं हरितगृह गैसों के उत्सर्जन की दर में उत्तरोत्तर कमी लाने की दिशा निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए।
(इ) ऊर्जा संयंत्रों में जीवाश्मीय ईंधन के उपयोग पर लगाम- हरित गृह गैसों के प्रमुख अवयव कार्बन-डाई-ऑक्साइड का प्रमुख उत्सर्जक जीवाश्मीय ईंधन पर आधारित ऊर्जा उत्पादक संयंत्र हैं, जिनकी भागीदारी लगभग २२प्रतिशत हैं।
ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों के रूप हाइड्रो ऊर्जा संयंत्रों, सोलर ऊर्जा संयंत्रों, पवन ऊर्जा संयंत्रों आदि पर जोर देकर ऊर्जा की महती आवश्यकता की पूर्ति बिना वैश्विक तापन के की जा सकती हैं।
भारत में अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों के विस्तृत संभावनाएं हैं व भारत के अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों से विद्युत् ऊर्जा परियोजनाओ को देखते हुए भारत की वैश्विक तापन के खिलाफ मजबूत भूमिका को समझा जा सकता हैं।
(ई) वाहनों से उत्सर्जित हरित गृह गैसों पर लगाम- वाहनों में भी जीवाश्मीय ईंधन का उपयोग छोड़कर अन्य ऊर्जा स्त्रोतों का उपयोग हरित गृह गैसों के उत्सर्जन पर लगाम का एक प्रमुख उपाय बन सकता हैं।
वाहनों में हाइड्रोजन आधारित वाहनों, सी एन जी आधारित वाहनों, विद्युत् चालित वाहनों, सौर बैटरी आधारित वाहनों का समावेश वैश्विक तापन पर लगाम लगाने के लिए एक मुख्य औजार सिद्ध हो सकते हैं।
उपसंहार:
आज मानव इस दोराहे पर हैं की एक ओर उन्नति की चाह हैं वहीँ दूसरी ओर आदम सभ्यता की ओर मुड जाने की राह हैं। दोनों में संतुलन करके नित निरंतर नवीनतम तकनीकी के इस्तेमाल कर हम उन्नति की ओर अग्रसर होकर भी वैश्विक तापन पर नियंत्रण कर सकते हैं।वैश्विक तापन पर नियंत्रण के बिना हम अनायास ही विनाश की राह पकड़ लेंगे।सारांशतः प्रत्येक व्यक्ति वैश्विक तापन के खिलाफ जंग का सिपाही वृक्षारोपण के माध्यम से बन सकता हैं।
1 comment:
Bahut achhi
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