Sunday, 28 August 2022
संतुलन- the balance
संतुलन व्यवस्था का दूसरा नाम हैं। संतुलन तराजू के दोनों सिरों के एक तल पर होने का भाव हैं। जीवन में भी संतुलन का महत्व हम सभी महसूस करते हैं। लेकिन संतुलन को पाने का लक्ष्य सभी के लिए दुष्कर प्रतीत होता हैं। कार्य जीवन संतुलन के प्रति जागरूकता लाने के घड़ियाली प्रयास यदा कदा कार्यालयीन व्यवस्था के अंग बन चुके हैं। हालांकि ये संतुलन जाहिर रूप से कुछ विरलों को ही नसीब होता हैं। ये तो कार्यालयीन संस्कृति की बात मान ले, इसके विपरीत हर व्यक्ति भी असन्तुलन को अपना साथी बनाये रखने में ही अपना मान समझता हैं। वैसे भी हर तंत्र की एन्ट्रापी बढ़ रही हैं और हम सभी भी उसी को बढ़ाने में प्रयासरत हैं। परिवार भी इसी असंतुलन की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। घर की बेटियाँ केवन बेटी बन कर, बहन, ननद, भुया जैसे रिश्तों का संतुलन नहीं बना पाती और अपने पीहर से कट सी जाती हैं। इस असंतुलन के दौर में वो पीहर को भी कमजोर कर देती हैं। परिवार में पीढ़ी समागम का न होना एक समस्या के रूप में परिवारों को तोड़ने का महती कारण बनता जा रहा हैं। इसी कड़ी में नई पीढ़ी एक रिश्ते को तवज्जो देकर अन्य रिश्तों को दरकिनार करती जा रही हैं और पीढ़ी समागम की कड़ी न बन कर परिवारों के विघटन का कारण बनती जा रही हैं। परिवार सदस्यों के अहम की बलि चढ़ते जा रहे हैं।
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