Tuesday, 17 January 2017

चिखलदरा : अनजाना पर्वतीय पर्यटक स्थल


हमें दो दिनों का अवकाश मिलने जा रहा था. परिवार से दूर खरगोन रोडीज के हम सभी साथी एक लम्बे अंतराल के बाद एक नए भ्रमण पर जाने की योजना बनाने लगे. हालाँकि ये योजना न होकर एक आपातकालीन समाधान ढूढ़ने का प्रयास भर था. एक ख्याल आया की क्यूं न सतपुड़ा की रानी पचमढ़ी की ओर कूच किया जाये. लेकिन दो दिनों के समय के साथ पचमढ़ी की यात्रा, जो की हम से लगभग चार सौ किलोमीटर दूर था, थका देने वाली महसूस हो रही थी. खरगोन रोडीज का ध्येय स्फूर्तिदायक यात्रा करना रहा है. अतः गूगल बाबा की मदद से एक लक्ष्य दो सौ किलोमीटर परिक्षेत्र के अन्दर मेलघाट बाघ संरक्षित क्षेत्र (मेलघाट टाइगर रिज़र्व) निश्चित किया गया. हालाँकि मेलघाट टाइगर रिज़र्व के बारे में हमारे पास पूर्ण जानकारी का अभाव था, फिर भी हमने मेलघाट टाइगर रिज़र्व को ही अपनी अगली यात्रा का गंतव्य निश्चित किया.

योजनानुसार चौदह जनवरी को प्रातः साढ़े दस बजे हमने (चार सदस्य मित्रों ने )अपनी कार से  खरगोन से अपनी मेलघाट टाइगर रिज़र्व खोज यात्रा प्रारंभ की. रास्ता ज्यादा अनजाना नहीं था, वैसे भी आज गूगल बाबा से अनजानी कोई दुनिया, कोई राह है ही कहाँ. हँसते-गुनगुनाते, रुकते- रुकाते, ठहाके मारते मारते हर किलोमीटर को मापते हुए हम एक अनजाने सफ़र पर लक्ष्य निर्धारित करते हुए आगे बढ़ रहे थे. खरगोन से खंडवा, धारणी होते हुए हम अमरावती की और बढे चले जा रहे थे. धारणी से आगे निकलते ही हमारे स्वागत मेलघाट टाइगर रिज़र्व के साइन बोर्ड से हुआ. लक्ष्य से नजदीकी एवं बढती हुयी हरियाली ने हमारे रोमांच को नए पंख लगा दिए थे. हरियाली के साथ बढ़ते हुए मोड़ों ने यात्रा के रोमांच को चरम पर लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. रास्ते में चलते हुए पूछते पाछते हमारी मंजिल का नामकरण सेमाडोह के रूप में हुआ.  

सेमाडोह की अमरावती से दूरी मात्र पचास किलोमीटर ही हैं. सेमाडोह में जंगल सफारी की सुविधा ही नहीं, वरन रहने के लिए दस डबल बेड के कॉटेज एवं चौसठ शयन शैया भी उपलब्ध हैं. इन सभी ने सेमाडोह को मेलघाट टाइगर रिज़र्व का महत्वपूर्ण स्थल बना दिया हैं. सेमाडोह के बारे में हालाँकि कुछ संक्षिप्त जानकारी हमारे पास पहले से उपलब्ध थी, किन्तु पूर्ण जानकारी के अभाव में हम वहां रहने के लिए आरक्षण नहीं कर सके थे. हम यात्रा का भरपुर आनंद लेते हुए सेमाडोह पहुंचे. सेमाडोह में प्रकृति का सामीप्य पाकर हमें अपने रुकने का आरक्षण सेमाडोह में न करने का मलाल होने लगा, क्यूँ की सेमाडोह अतिथि गृह के कर्मचारी ने बताया की यहाँ उपलब्ध सभी कॉटेज एवं शयन शैयाये पहले से पूर्णतया आरक्षित हैं. लेकिन साथ ही उन्होंने बताया की, यहाँ बिजली की अच्छी व्यवस्था नहीं हैं व सामान्यतः यहाँ रात की बिजली गुल हो जाती हैं. साथ ही उन्होंने सुझाया की आप सभी चिखलदरा चले जाये जो की एक निकटवर्ती पर्वतीय स्थल हैं और वहां सरकारी एवं गैर सरकारी ठहरने की सभी प्रकार की प्रचुर व्यवस्थाएं हैं. इस तरह हमारा गंतव्य अचानक ही चिखलदरा हो गया. सेमाडोह में हमें साढ़े पांच बज रहे थे और जंगल सफारी की समय सारणी के अनुसार या तो हम तभी जंगल सफारी कर सकते थे या फिर हमें अगले दिन सुबह छः से आठ की अवधि में जंगल सफारी करनी होगी.



इस परिस्थिति में हमारे अनुभवी साथी ने एक दूरदृष्टा की तरह, दल को उसी समय जंगल सफारी पर चलने के लिए निर्देशित किया. हम सभी ने वहां जंगल सफारी कराने वालों के हाव भाव से महसूस कर लिया के शायद ही यहाँ हमें टाइगर दर्शन हो. अतः हमने जंगल सफारी के लिए अपनी कार से ही जाना तय किया. हमारे एक साथी को पहाड़ों में कार चलाने का अच्छा अनुभव रहा हैं, अतः उन्होंने कार स्वयं चलाना नियत किया और नंदू गाइड को साथ लेकर श्रीकृष्ण की भांति हम अर्जुनों को मेलघाट टाइगर रिज़र्व भ्रमण कराने का बीड़ा उठाया.

नंदू ने बताया की मेलघाट टाइगर रिज़र्व को बाघ संरक्षण के प्रथम फेज में ही बाघ आरक्षित क्षेत्र के रूप में १९७४ में चयनित किया गया. मेलघाट टाइगर रिज़र्व सतपुड़ा की पहाड़ियों पर अवस्थित हैं. मेलघाट टाइगर रिज़र्व २०२९.०४ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमे से मात्र ३० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जंगल सफारी के लिए चयनित हैं. इस सब जानकारी के साथ हमने अपनी जंगल सफारी की शुरूआत की. जंगल की असीम शांति, महुआ की मोहक खुशबू, पीली पड़ती हरियाली एक सुखद अहसास दे रही थी. हालाँकि बाघ से मिलने के आसार लगभग नगण्य थे, पर कहीं आशा की एक कौर टिमटिमा रही थी की शायद हम शेरो को देख कर ही शायद बाघ मिलने आ जाये. तमाम रास्ते की विषमताओं को पार करते हुए बाघ से मिलने की आस का दिया जलाये रखे हम जंगल सफारी की अंतिम मोड पर थे की अचानक सामने से आती कार को जगह देने के प्रयास में हमारी कार एक गड्ढे में उतर गयी. पहाड़ी जंगली रास्ते में कार अटकने से, सफारी गाडी न लेने का मलाल, मन ही मन कोसने सा लगा था. तभी दूसरी गाड़ी के चालक ने आकर सुझाव दिया की गाड़ी को जैक से उठाकर पत्थर वगैरह भरकर गाडी को गड्ढे से निकाला जा सकता हैं और ऐसा ही हुआ. सच ही है, अनुभव का कोई सानी नहीं हैं. आखिर हम जंगल सफारी ख़त्म कर बाघ से मिलने के दिवा स्वप्न को बिखरता हुआ छोड़ कर अपने गंतव्य चिखलदरा की ओर रूख कर गए.

सेमाडोह से चिखलदरा को दूरी मात्र पच्चीस किलोमीटर है और रास्ता मेलघाट टाइगर रिज़र्व के जंगलों से होकर ही गुजरता हैं. यहां मार्ग में मोड़ों की गिनती करना भी दुष्कर था. आखिर इस दुर्गम मार्ग पर सावधानी पूर्वक चलते हुए हम चिखलदरा पहुँच गए. चिखलदरा का रात्रिकालीन दृश्य अपने आप में एक चुम्बकीय आकर्षण समेटे हुए था. हमने भी एक होटल चयन कर उसमे सामान डाला  और खाना खाने निकल पड़े. खाने के आनंद ऐसा की हम लगभग डेढ़ घंटे तक आराम आराम से कुछ कुछ खाते रहे और अंततः खाना खाकर होटल पहुँच कर सो गए. अगले दिन तय कार्यक्रमानुसार हम सभी सुबह नौ बजे होटल से सामान सहित विदा लेकर चिखलदरा के विभिन्न पर्यटक पॉइंट्स की तरफ निकल पड़े.

चिखलदरा ११८८ मीटर के ऊँचाई पर स्थित अमरावती (महाराष्ट्र) की एक पहाड़ी हैं. चिखलदरा में हम सबसे पहले भीम कुण्ड पहुंचे. भीम कुण्ड के बारे में मान्यता है की यहाँ पर पांडव पुत्र भीम ने कीचक का वध कर अपने हाथ धोये थे. यहाँ यह भी किंवदती है की भीम ने कीचक को मल्ल युद्ध में हराकर मार कर उसे चिखलदरा की घाटियों में फ़ेंक दिया था. इसीलिए इस स्थान का नाम कीचकदरा कहा जाता था जो कालांतर में अपभ्रंश हो कर चिखलदरा हो गया. भीम का कीचक को मार कर हाथ धोने को सच माने या न माने, किन्तु भीम कुण्ड पर बहने वाले झरने (जो कि अभी सुखा था) को देख कर उसे सिरे से नकार देना शायद ही संभव हो.





चिखलदरा में घाटी के किनारे कई सारे दर्शनीय पॉइंट्स नामकृत हुए है यथा हरिकेन पॉइंट, सनसेट पॉइंट, मंकी पॉइंट, मोजरी पॉइंट, देवी पॉइंट, पञ्च बोल इत्यादि. इन सभी पॉइंट्स से घाटी की मनोरम छटा देखने वालों का मन मोह लेती हैं. ख्याल आता था की यदि इस मौसम में यहाँ प्रकृति की रमणीयता का ये आलम हैं तो वर्षा ऋतु में आलम क्या होता होगा? मोजरी पॉइंट पर तीन तरफ से घाटी का दृश्य अत्यन्य लुभावना था. उस तीन तरफ से घाटी वाले पॉइंट पर खड़े होकर सेल्फी लेने का अंदाज़ टाईटेनियम के नाव के कोने पर फोटो खींचने से कम रोमांचक नहीं था. मोजरी पॉइंट पर नीबू पानी के मजे ने भी तरो-ताजगी भर दी थी. पञ्च बोल में भी घाटी के किनारे खड़े होकर आवाज़ लगाकर प्रतिध्वनि सुनना अपने आप में एक रोमांचक घटना सदृश थी. देवी पॉइंट पर घाटी में देवी का मंदिर और उसी मंदिर के पीछे सपाट मैदान में घुड़सवारी एवं ऊँट सवारी की व्यवस्था बच्चों और बड़ों दोनों को एक कतार में खड़ा महसूस करा रही थी. घुड़सवारी एवं ऊँट सवारी में मशगूल लोगों के जोश ने हमें भी जोश से भर दिया.

चिखलदरा के विभिन्न पर्यटक स्थलों में गविलगढ़ दुर्ग को भूल कर चिखलदरा यात्रा को याद रखना नामुमकिन हैं. गविलगढ़ दुर्ग की भव्यता एवं विस्तृतता देखकर भारतीय पुरातन अभियांत्रिकी तकनीकी के सामने नतमस्तक होने का मन करता हैं. चौदहवी- पंद्रहवी शताब्दी में बना यह दुर्ग हमारी विरासत की गहराइयों को परिलक्षित करने वाला विशिष्ट उदाहरण प्रतीत होता है. आज जर्जरित अवस्था में खड़ा यह दुर्ग मनो अपने आप में ही अपनी पुरानी शान-ओ-शौकत का अंदाज-ए-बयां कर रहा हो. समयाभाव के कारण हम गविलगढ़ किले का पुर्नावलोकन तो नहीं कर सके लेकिन इसके दर्शन मात्र ने ही हमें अपनी विरासत के गौरव से रोमांचित कर दिया था.



 सक्कर तालाब चिखलदरा का एक और आकर्षक पर्यटक स्थल हैं. यहाँ नौकायन की सुविधा थी, लेकिन इस समय पानी की बहुतायत नहीं थी. अतः हमने नौकायन की संभावनायों को अपनी अगली चिखलदरा यात्रा के लिए छोड़ दिया.


चिखलदरा में स्थित फारेस्ट उद्यान में जाने के विचार ने ही शायद हमें प्रवेश द्वार से बच्चा बना दिया था. फारेस्ट उद्यान में एक टॉय ट्रेन, पूरे उद्यान में लगभग १.५ किलोमीटर वृत्त में चक्कर लगाती हैं. इस ट्रेन में यात्रा ने हमें अपने बचपन और इस उद्यान की मनोरमता का सहज अहसास करा दिया. यह उद्यान संरक्षण और शायद पैसों के अभाव में शायद अपनी भव्यता को खो चुक रहा था. हालाँकि, मचान पर चढ़कर, फारेस्ट उद्यान की हरियाली निहारना अपने आप में एक सुखद एहसास था.

चिखलदरा की इन बहु-आयामी छटायों की यादों को समेटकर हम वापिस अपने स्थान की और रवाना हो रहे थे. रास्ते में सेमाडोह पहुँचने पर हमें, एक ढाबे पर चूल्हे पर बनती रोटियों और पेट में कूदते चूहों ने यकायक आकृष्ट कर लिया. चूल्हे पर सीकी गरमा गर्म रोटियों के साथ मन मुताबिक सब्जियां न होने के बावजूद भी खाने का स्वाद आत्मा तृप्त करने जैसा अनुभव दे रहा था. खाना खाकर पुनः हम अपनी यात्रा की यादों को समेटते हुए ईश्वर का धन्यवाद करते हुए अपने स्थान की ओर बढ़ चले. वापसी की यात्रा व्यवहारगत गुमशुदगी की तरह ही थी, क्योकि फिर एक बार दैनिक जीवन में आकर गुम हो जाना हैं.  लेकिन दो दिन की इस यात्रा के बाद भी वापसी के समय ताजगी और स्फूर्ति बनी हुयी थी. सच में प्रकृति से बड़ा स्फूर्तिदायक कोई नहीं हैं. चिखलदरा मानस स्मृति पटल पर सदैव अंकित रहेगा. पुनः चिखलदरा भ्रमण अवश्यम्भावी हैं, लेकिन इस बार यह वर्षा ऋतु के तुरंत बाद सितम्बर या अक्टूबर महीने में होगा.












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