Tuesday, 31 January 2017

सप्ताह के दिन

जीवन क्या है? आज यह समझ पाना बहुत बड़ा मुद्दा है। यहाँ तक की गली, मोहल्ले से लेकर राजकीय और राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अनेक स्वयम्भू गुरु यह ज्ञान देने के लिए विद्यालय खोले बैठे हैं। हम आज बिना सप्ताह के दिनों को गिने अपना जीवन जिए जा रहे हैं। हम धन और सिर्फ धन की चाहत में इस कदर तेज रफ्तार से बढ़ रहे है कि हम यह भी नहीं कह सकते की हम सप्ताह में कितने दिन जीते हैं। हम अपने तथाकथित लक्ष्य प्राप्ति के लिए घरोंदे मानिंद अपने फ़्लैट्स या घरों से सूरज उगते ही निकल कर सोने के लिए अपने घरोंदों की और रुख किये ही सप्ताह छः दिन निकाल देते हैं। शायद ही यह हमारी सोच में आता है कि इन सभी प्रयासों से हमारे शरीर या आत्मा को किस तरह सुख मिलने वाला हैं।

लेकिन यह सोच पाना इस समय सही प्रतीत नहीं होता जबकि हम धन प्राप्ति के उस शिखर को छूना चाहते हो जो हमारी इच्छाओं को आजीवन पूरा कर सकें। लेकिन हम भूल जाते है कि इस अनिश्चित इच्छा के लिए अपना सर्वस्व झोंक कर क्या हम अपने जीवन के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे हैं? हम सदैव अपनी जिंदगी को कतरते जा रहे हैं। पता नहीं हम किस अकूत संपत्ति के साथ कौनसी स्वप्निल जिंदगी जीने की योजना बना रहे हैं।

हम धनार्जन तो कर रहे हैं, पर क्या इसे खर्च करने का समय हमारे पास हैं या होगा? हमने अपने परिवार के साथ बिना अनर्गल व्यवधान के बैठे हुए कितने दिन हो गए हैं, सोचनीय हैं। हम अपने परिवार के साथ कब बिना चिंता के आखिरी बार बतियाये थे, ये याद कर पाना भी नामुमकिन प्रतीत होता हैं।

यहीं नहीं, क्या हमने अपनी आत्म संतुष्टि के लिए सोचा हैं। हम यह भी यक़ीनन नहीं बता सकते की क्या हमें आत्म संतुष्टि देता हैं? इसके साथ ही, हमने अपने सुकून की आखिरी बार अनुभूति कब की थी, विस्मृत कर पाना दुष्कर प्रतीत होता हैं।

माना कि समाज में धनार्जन के बिना जीवन यापन संभव नहीं, पर इसका यह मतलब कतई नहीं की धनार्जन ही जीवन का लक्ष्य बन कर रह जाये। अतः हमें धनार्जन एवं आत्म संतुष्टि के बीच सामंजस्य बनाना चाहिए। हमें निरंतर प्रयास करने चाहिए की हम जीवन में अपने उपयुक्त लक्ष्य निश्चित करे एवं जीवन यापन इस प्रकार करे की हम अपनी जिंदगी को जीना न भूल जाए। 

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