ऐ खुदा मुझ को अब,
ऊचाइयां देना नहीं,
बरकत अदा करना बस,
मुझे,आफताब करना नहीं।
ऊँचें पहाड़ों पर भी,
बस बर्फ होती है जमा,
हरियाली होती नहीं वहां,
निर्जनता बसती केवल वहां।
ऊँचें खजूर की अपनी व्यथा,
छाया तक मिलती नहीं यहाँ,
फल का पता तो कुछ नहीं,
टकराती हवा भी देती डरा।
ऊचाइयां देना नहीं,
बरकत अदा करना बस,
मुझे,आफताब करना नहीं।
ऊँचें पहाड़ों पर भी,
बस बर्फ होती है जमा,
हरियाली होती नहीं वहां,
निर्जनता बसती केवल वहां।
ऊँचें खजूर की अपनी व्यथा,
छाया तक मिलती नहीं यहाँ,
फल का पता तो कुछ नहीं,
टकराती हवा भी देती डरा।