Saturday, 10 June 2017

किसान

इस कृषि प्रधान देश में जब किसान आंदोलन या किसान की मौत होती है तो मन विचलित हो जाता हैं। सोचने की बात हैं कि हम किस प्रगति की बातें हांक रहे हैं। बचपन मे पढ़ाया जाता था कि भारत एक कृषि प्रधान देश हैं जिसकी 80% जनसंख्या कृषि पर निर्भर हैं। आज ये आंकड़ा महज 52% पर आ कर अटक गया हैं। कृषि क्षेत्र घट रहे हैं और कृषक भी। एक लेख पड़गा था अभी की आज भी विभिन्न फसलों के दाम दस वर्ष पूर्व के दामों से दुगुना भी नहीं हुए है वहीं आय से लेकर अन्य सामानों के दाम कई गुना बढ़ गए हैं। बात सच भी हैं। पर क्या कारण है कि किसानों को आजादी के इतने वर्षों के बाद भी जायज हक नहीं मिल पाया। उसमे भी ताज्जुब यह है कि पहली संसद से लेकर आज तक हर संसद में पहुंचे हुए जन प्रतिनिधियों के एक बहुत बड़े हिस्से का राजनीति के अलावा केवल कृषि व्यवसाय रहा है। भारत में राजनीति तो केवल जनता की सेवा मात्र है, उससे कुछ कमाना तो लानत हैं। अब केवल कृषि व्यवसाय पर निर्भर रहकर न जाने कितने ही जन प्रतिनिधि अपनी संपत्ति को कितने सैंकड़ो गुना कर चुके हैं। वहीं आम किसान पता नहीं क्यों अपने परिवार को पालने में असमर्थ रहे हैं और अपनी जान देते रहे हैं। बात हिसाब रखने की हैं। जब तक एकाउंटेबिलिटी नहीं होती, तब तक उस मुद्दे पर कोई वार्तालाप भी नहीं होता हैं। इसी आड़ में बाहुबली किसान अपनी टैक्स फ्री कृषि आय साल दर साल कई कई गुना बढ़ाते हुए तंत्र से भी ऊपर निकल गए हैं वहीं उसी कृषि क्षेत्र के दूसरे किसान अपने परिवार को पाल भी न पाने की स्थिति से दो चार हो कर अपनी जान देने को विवश हो जाते हैं। काश वो बाहुबली किसान अपनी सफल कृषि तकनीकी जैसे बीज चयन  से लेकर खाद, सिचाई की उन्नत तकनीकी का राज अन्य किसान भाइयों से भी साझा कर लेते तो , शायद ये दिन न देखना पड़ता। फिर एक बात ये भी ख्याल में आती है कि जो कृषि से लगातार लाभ प्राप्त करते हुए अकूत संपत्ति जोड़ पा रहे हैं ऐसे तथाकथित किसानों से टैक्स वसूल कर गरीब किसानों के लिए कोई फण्ड बना देना चाहिए, ताकि भविष्य में किसानों की जान  की आहुति को रोका जा सके ।

संतुलन- the balance

संतुलन व्यवस्था का दूसरा नाम हैं। संतुलन तराजू के दोनों सिरों के एक तल पर होने का भाव हैं। जीवन में भी संतुलन का महत्व हम सभी महसूस करते हैं...